मिलें सुधांशु शेखर से: अनुभवों को शब्दों में पिरोती एक जीती-जागती क़िताब

योरकोट पर हमारी अनुभवी लेखिका Ayena Makkar Girdhar के सुधांशु जी से हुए साक्षात्कार के कुछ अंश आपके सामने परोसे गए हैं। क़िताब जब ख़ुद कुछ कहती है तो क्या होता है, आइए देखते हैं।

Shrey Saxena
YourQuote Stories

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Sudhanshu Shekhar

1. धन्यवाद सुधांशु जी, आपसे साक्षात्कार करने का मौका प्रदान करने के लिए। इसे शुरू करते हुए आपके पाठकों को अपनी अज़ीम शख्सियत से रूबरू करवाएं।
अपना परिचय देना दुनिया का सबसे जटिल काम है। क्या बताऊँ और कहाँ से शुरू करूँ।मैं पटना का रहने वाला हूँ। मध्यमवर्गीय परिवार का हूँ पर सपने बड़े देखे। उन सपनों में कोई उच्च पद या धन ऐश्वर्य की ख़्वाहिश कभी ना रही। सपना था हर वक्त कुछ नया सीखने का या जो सीखा है उसमें निरंतर सुधार करने का।

मसलन एक मित्र अच्छी चित्रकारी करते थे। उनसे प्रेरणा पाकर मैंने भी रंग खरीदे और दस बीस पेंटिग्स बना डालीं। clay से एक दो मूर्तियाँ भी बनाई। संगीत का शौक बचपन से था पर विधिवत शिक्षा नहीं मिली कभी। लेकिन बिना किसी के सिखाए हारमोनियम बजा लेता हूँ। और जब साज बजे तो आवाज लाज़िमी हो जाती है, सो ग़ज़लें भी गाई। जिँदगी अपनी गति से आराम से चल रही थी कि एक तूफान आया; गले में एक गम्भीर बीमारी ने जीवन और मौत के बीच झूलने पर मजबूर कर दिया। अस्पताल के oncology वार्ड में मौत के साए में मैंने जिँदगी की धूप तलाशी; डॉक्टर ने बोलना मना किया था। लिख कर बातेँ बताने के लिए एक लेटर पैड मिला। पैड सुंदर था। उसके कागज glossy थे। उस कागज पर अपने लिए पानी माँगना या “मुझे टाय्लेट जाना है” लिख कर कागज की तौहीन करना मुझे गवारा नहीं था। उस पैड के कागज की उपयोगिता तो उस पर जिँदगी के गीत या जिँदगी की कहानी लिखकर ही सिद्ध की जा सकती थी और मैंने यही किया। अस्पताल में ही उस पैड पर अपनी बीमारी और बीमारी के दौरान उठने वाले मनोभावो को लिखना शुरू कर दिया और घर आते-आते मेरी एक रचना तैयार हो चुकी थी- शीर्षक रखा “अन्तर्यात्रा”। इसकी फोटो कॉपी दोस्तों और रिश्तेदारों में खूब बँटी और लोगोँ ने खूब सराहा। बाद में थोड़ा संशोधन और जोड़-घटाव कर इसे मैंने अपने ब्लॉग में डाल दिया और शीर्षक बदल दिया- “एक खामोश सफर “। इसे मेरे ब्लॉग में पढ़ा जा सकता है। ब्लॉग अड्रेस है — http://ekkhamoshsafar.blogspot.in । लिखने का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ। हालाँकि अन्तर्यात्रा या एक खामोश सफर मेरी पहली रचना नहीं है। पहली रचना मैंने लिखी थी “आदमी का ज़हर” जो एक सच्ची घटना पर आधारित थी और मेरे मोहल्ले में रहने वाले इतिहास के एक प्रोफेसर साहब के साथ घटी थी। उन्हें मैं देखने गया था और उनकी आपबीती सुन कहानी लिख डाली। यह कहानी उन्होंने अपने कॉलेज में सबको पढ़ाई और बाद में यह एक पत्रिका में छपी। तब से अब तक पचास कहानियाँ मैंने लिखी होंगी जिसमें अधिकाँश बैंक की गृह पत्रिका में छपीं। कुछ कविताएँ भी लिखीं जो ज्यादातर ट्रेन के सफर या जीवन यात्रा से सम्बंधित हैं।

एक पुरानी कहावत ‘when an old man dies a library is lost’ से प्रेरित होकर आजकल अपने जीवन की यात्रा से जुड़े संस्मरण लिख रहा हूँ ‘यादों की तितलियाँ’ नाम से। बचपन से लेकर अब तक के खट्टे-मीठे अनुभवों का ज़ख़ीरा; ये अनुभव निरर्थक नहीं हैं। इनमें प्रकृति के नियम, मानवीय संवेदनाएं एवं जीने की अदम्य इच्छा शक्ति छिपे हुए हैं। यादों की तितलियाँ की कड़ियाँ नियमित रूप से मैं YourQuote पर लिख रहा हूँ जिसे पढ़ने के लिए yourquote मेँ #यादोंकीतितलियां click करें।
कविता और कहानियाँ दोनों मुझे पसंद हैं। कहानी लेखन में सृजित पात्रों द्वारा पूरी कहानी में समाज को दिए जा रहे संदेश के प्रति न्याय कर पाना लेखक के लिए एक कठिन कार्य है। कहानी व्यक्तिगत होगी तो उतना प्रभाव नहीं छोड़ती पर कविता तो मन में उठने वाली तरंगों का नाम है। कविताओं में कम शब्दों में अपने मनोभावों को उकेरा जा सकता है। प्रेम सम्बन्धी कविताएँ तो सीधा दिल को छूती हैं क्योंकि प्रेम ही ऐसा विषय है जिससे कोई अछूता नहीं।

चार भाई बहनों में दूसरे नम्बर पर। मुझसे बड़ी मेरी एक बहन हैं फिर में, फिर एक भाई और फिर सबसे छोटी बहन। बचपन नाना-नानी के पास बीता। नाना जी अपने ज़िले के प्रथम ग्रैजुएट थे और भाषाविद। उनके पास किताबों का ज़ख़ीरा था। फिर मेरी माता जी भी हिंदी साहित्य की स्नातकोत्तर हैं। इस तरह घर में साहित्य का माहौल बचपन से मिला। हमारे घर मे एक प्रथा थी कि हम भाई-बहनों को जन्मदिन पर किताब ही उपहार में देते। इस तरह हमारी लाइब्रेरी भी बढ़ती गई। इसके अतिरिक्त हम भाग्यशाली थे कि हमारे ही मोहल्ले में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर और आंचलिक भाषा के महान उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु रहते थे। इन दोनों महारथियों की रचनाएं हमारे कोर्स में चलती थीं। उन दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया से प्रकाशित सर्वाधिक बिकने वाली और लोकप्रिय बच्चों की पत्रिका ‘पराग’ में इन दोनों महारथियों के साथ हमारा साक्षात्कार छपा। पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डॉ जगदीश नारायण चौबे की संगति में मेरी साहित्यिक और कलात्मक अभिरुचि परिष्कृत हुई जबकि मैं विज्ञान का विद्यार्थी था।
उन दिनों के बिहार के सर्वश्रेष्ठ कॉलेज पटना सायन्स कॉलेज से मैंने वनस्पति शास्त्र में स्नातक किया। जे.पी. आंदोलन में परीक्षा के सत्र अनियमित हो गए। बाध्य होकर बैंक में नौकरी जॉइन कर ली।
भारतीय स्टेट बैंक में 39 साल नौकरी करने के पश्चात चीफ मैनेजर के पद से इसी साल के अगस्त माह में सेवानिवृत्त हुआ। सेवा काल के दौरान स्टेट बैंक से छपने वाली गृह पत्रिका ‘चेतना’, ‘पाटलिपुत्र दर्पण’, ‘कलीग’ और ‘प्रयास’ (जिसे भारतीय रिजर्व बैंक ने सर्वोत्कृष्ट पत्रिका के रूप में सम्मानित किया है) में मेरी कविता कहानियां छपती रहीं।
पर बैंक एक टारगेट ओरिएंटेड संस्था है जहाँ माह का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिदिन की मेहनत आवश्यक है। कविता कहानी लिख पाना संभव नहीं हो पाता । इस पीड़ा को मैंने एक कविता में व्यक्त किया जो ‘कलीग’ में छपी । यह कविता मैं नीचे दे रहा हूँ:

“आज मैं हुआ पचपन का
याद आ रहा एक वाक़या बचपन का
बारह का हुआ तो नानी अक्सर कहती थी
‘‘बारह बरस का पुत्ता, भए तो भए नहीं तो गए”
तेरह से उन्नीस तक ‘टीन’ था
सो टीन की तरह बजता रहा…
बीसेक साल की उम्र में काम मिला
तो नानी बहुत खुश हुई थी
’पुत्ता बन गया’

और मैं…..
साँप-छ्छून्दर की तरह
काम न निगलते बना न उगलते
आज तक फँसा हुआ हूँ
मन ने चाहा कोई गीत रचूँ
कुछ गुनगुनाऊँ,
दिल ने कहा कुछ रंग भरूँ
कोई चित्र बनाऊँ
बुद्धि ने कहा लेख लिखूँ
कोई ग्रंथ गढूँ
तभी काम ने कहा
हवाओं में उड़ने की तुम्हें इजाज़त नहीं
नौकरी की पुस्तिका में
गीत रचने
चित्र बनाने या
ग्रन्थ लिखने के निर्देश नहीं
हमें चाहिए तुमसे
लाभ और वृद्धि
इसलिए काबू में रखो
अपना मन और बुद्धि
ये सब करने थे तो काम में न आते
और ‘पुत्ता गए’ कहलाते

आज मैं अपनी टूटी हुई आवाज़
सादा कैनवास और
कोरे कागज को देखते हुए
सोचता हूँ
कितना अच्छा होता मैं
बारह बरस पर ही रुका रहता. “

इसके अतिरिक्त Rumour Books India से प्रकाशित ‘Mango Chutney’ और ‘Green Mango More’ नाम की कहानी संग्रह में मेरी कहानियां छपीं। ‘प्रेम की चाशनी’ नाम की कहानी लोगों ने खूब पसंद की।

अबतक की ज़िंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे। अच्छे भी बुरे भी। बुरे में सिर्फ दो घटनाओं का जिक्र करना चाहूंगा । पहला, कॉलेज से शैक्षिक ट्रिप में कश्मीर यात्रा के दौरान भयानक रूप से बीमार पड़ा। और दूसरा, 2006 में मुम्बई के लीलावती अस्पताल में गले में हुए प्रथम चरण के कैंसर का इलाज हुआ। दोनों परिस्थितियों में मौत का सामना हो गया जिसका मुझ पर काफी भावनात्मक प्रभाव पड़ा। दोनों घटनाओं का बड़ी शिद्दत से मैंने कलमबद्ध किया है जिसे मेरे ब्लॉग में पढ़ा जा सकता है , जिसका नाम है
ekkhamoshsafar.blogspot.com
yaadokititliyan.blogspot.com
YourQuote में मैं एक सक्रिय सदस्य हूँ। सेवानिवृत्ति के बाद मैंने वायलिन सीखना शुरू किया है । विधिवत संगीत सीखने की वर्षों पुरानी साध अब पूरी कर पाऊँ, यही महत्वाकांक्षा है।

2. हमें पूरा भरोसा है कि आपकी सभी महत्वाकांक्षाओं को आप ज़रूर पूरा करेंगे। अपने परिवार के बारे में हमें बताएं।
मेरी परवरिश नाना के घर हुई। नाना के पास अच्छी किताबों का संग्रह था। मेट्रिक तक आते आते मैंने अधिकांश पुस्तकें खास कर हिंदी की, पढ़ डालीं। बिहार में जिन दिनों स्त्रियों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना एक सपना हुआ करता था, मेरी माता ने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और अभी बयासी वर्ष की हैं। रामचरित-मानस उनका स्पेशल पेपर था। मेरी पत्नी अर्थ-शास्त्र में पीएचडी हैं और धनबाद के एक कॉलेज में व्याख्याता है। बच्चों की स्कूली शिक्षा तक वह गृहिणी थीं परंतु बच्चों के कॉलेज जाने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई सजीव कीं और एम. ए. करने के तकरीबन बीस वर्षों बाद सारी शैक्षणिक योग्यता जैसे पीएचडी और नेट की परीक्षा उत्तीर्ण की। दो बच्चे हैं- एक लड़का और एक लड़की।

बेटे का नाम हर्ष स्नेहांशु है। उसने आईआईटी दिल्ली से B.Tech किया और YourQuote नामक स्टार्टअप चला रहा है।

बेटी का नाम सौम्या स्नेहिल है। दिल्ली के गार्गी कॉलेज में पढ़ते वक्त अचानक ही इन्हें फोटोग्राफी में रुचि जागी। शुरू में लगा कि यह रुचि शौक़िया होगी पर यह शीघ्र ही जुनून की हद तक जा पहुंची। देश के ख्यातिप्राप्त फोटोग्राफर श्री रघु राय जी के वर्कशॉप में जब इन्हें आशीर्वाद मिला तब मुझे एहसास हुआ कि यह सही मार्ग पर जा रही हैं। Canon द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में इन्होंने Runner Up का खिताब हासिल कर मेरे विश्वास को पुख़्ता कर दिया। इनकी खींची तस्वीरें Carvan, Tehalka तथा The Hindu में छप चुकी हैं। आज की तारीख में यह सिनेमाटोग्राफी में भी अपना स्थान बना चुकी हैं तथा YourQuote प्रोडक्शन लिमिटिड द्वारा निर्मित लघु फिल्में जैसे शगुन, किताब और उधार की ज़िंदगी में बतौर सिनेमाटोग्राफर काम कर चुकी हैं। Homegrown नाम की सम्मानजनक पत्रिका में इनकी फोटोग्राफी ‘Unfiltered Humans’ प्रोजेक्ट के तहत फीचर हुई है। शुरू में Happy Shooting में इनके फोटोज़ काफी लोकप्रिय हुए। Touch Talent और Instagram में इनकी खींची तस्वीरें देखी जा सकती हैं। इसके अलावा ये Story writer भी हैं और इनकी कहानी Chicken soup for soul :Teenager talks अंक में छप चुकी हैं तथा YourQuote में इनके कोट्स देखे जा सकते हैं।

3. एक पिता होने के नाते शायद इससे अच्छी बात क्या ही होगी। आपके तज़ुर्बे से अपने बच्चों को ज़िंदगी के रास्ते ख़ुद ही ढूंढने देने चाहिए या अपने हिसाब से उनके लिए रास्ते तय करने चाहिए?
बच्चों में असीम संभावनाएं होती हैं। उन्हें अपने रास्ते खुद ढूँढने की छूट मिलनी चाहिए। अपने हिसाब से उनके लिए रास्ते तय करने से हम उनकी उड़ान के लिए पर(पंख) में मज़बूती नहीं दे पाते। मेरे दोनों बच्चों ने अपने रास्ते खुद चुने।

4. यह सुनकर इस पीढ़ी को तसल्ली और उदाहरण, दोनों मिलेंगे। जब लेखन व गायन जैसे विषयों में पकड़ मज़बूत थी तो बैंक में काम करने का निर्णय ही क्यूँ लिया आपने?
मैं उस युग का प्रतिनिधित्व करता हूँ जिस युग में अभिभावक अपने बच्चों के करियर के बारे में हमेशा चिंतित एवं सशंकित रहा करते थे। बेटा अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और बेटी की शादी हो जाए, बस यही मुख्य एजेंडा हुआ करता था। करियर भी अपनी रुचि अनुसार नहीं। दादा का सपना था कि घर में एक डॉक्टर होना चाहिए तो पढ़ने लगे बायोलॉजी। दादा का सपना जब पिताजी पूरा ना कर सके तो मैं कहाँ से करता। विडम्बना यह हुई कि जब करियर बनाने की जद्दोजहद में बैंक की नौकरी पकड़ी, वह भी इसलिए कि जीवन सुरक्षित हो जाए। तो यह पाया कि काम कर रहा हूँ वाणिज्य और अर्थशास्त्र से सम्बंधित, पढ़ाई की बायोलॉजी विषय की और रुचि है ललित कला में जिसमें संगीत, साहित्य और कला तीनों आता है। लेखन और गायन की स्वीकृति शौक के लिए थी पर करियर के लिए नहीं।

5. जाने कितने ही अगर-मगर सोचे जा सकते हैं इस जवाब पर। लेखन और संगीत, दोनों में से एक को चुनना हो तो किसे चुनेंगे आप, और क्यूँ?
कठिन सवाल है यह फिर भी मैं लेखन ही चुनूँगा क्योंकि लेखन आप कहीं भी कर सकते हैं, यात्रा के दौरान भी। मोबाइल app पर लिखने की सुविधा आने के बाद लेखन के लिए अब वक्त और स्थान सोचने की आवश्यकता नहीं। विचार आते ही तुरंत लिख डालिए।

6. यक़ीन है कि आपके पाठकों को व्यक्तिगत खुशी हुई होगी आपके जवाब से। आपके हिसाब से आज की प्रौद्योगिकी के साथ कदम मिला के चलना ज़रूरी है या फ़िर अपनी पुरानी सभ्यता पर अटल रहना?
आज की प्राद्यौगिकी के साथ कदम मिला के चलना समय की मांग है और हमें इसे स्वीकार करना ही चाहिए क्योंकि यही प्रगतिशीलता है। बच्चों के साथ ताल मेल बिठाने के लिए भी यह जरूरी है। परंतु पुरानी सभ्यता जो हमारी कोर वेल्यू है, वह चाह कर भी छूट नहीं सकती क्योंकि आपने खुद उसका नाम सभ्यता कहा है और वह पुरानी नहीं हो सकती। सभ्यता हमें बंधनों से मुक्त करती है ना कि दास बनाती है।

7. प्रतिध्वनि हो। लेखन और संगीत के अलावा आप और किस विषय में रूचि रखते हैं?
चित्रकला में मेरी गहरी अभिरुचि है।

8. आपकी अभिरुचि के कुछ प्रतिरूप इस साक्षात्कार में सभी को देखने को मिले। आपको पढ़ने में क्या पसंद है? और आपके पसंदीदा लेखक कौन हैं?
फेहरिस्त काफी लम्बी है। अंग्रेजी साहित्य में Non fiction पढ़ना पसंद है जिसमें पसंदीदा लेखक गुरचरन दास, रामचंद्र गुहा, विनोद मेहता, मेनेजमेंट में स्टीफन कवी, जैक वेल्श, जैक कैनफील्ड,
बायोग्राफी में महात्मा गांधी की ‘My experiment with truth’, योगानंद परमहंस की ‘An autobiography of a Yogi’ और स्टीव जॉब की बायोग्राफी ईआक्शन की लिखी हुई इत्यादि।
हिंदी साहित्य में प्रेमचंद, चतुर सेन शास्त्री, और विजयदान देथा (राजस्थानी पृष्ठभूमि पर आधारित जिनकी कहानियां घंटों सोचने को मजबूर करती हैं ) और नए में अखिलेश।

बंगला साहित्य में (हिंदी में अनूदित) शरतचंद्र, रवींद्र नाथ की कहानियां (प्रकाशन संस्थान से प्रकाशित दो भागों में ) और शंकर के उपन्यास जैसे चौरंगी, जन-अरण्य, आशा-आकांक्षा।
कविताओं में कबीर के दोहे, ग़ालिब, गुलज़ार (सर्वाधिक पसंद, संवेदनशीलता में जिनका जवाब नहीं, इमेजेज का प्रयोग कोई इनसे सीखे। जैसे एक उदाहरण देखिए; जाड़े के दिनों में बदली छंटने के बाद अचानक घर के कमरे में दरवाज़े के नीचे से धूप की किरण आये तो आप क्या लिखेंगे? धूप का टुकड़ा या धूप का क़तरा — बस यही ना? यह सिर्फ और सिर्फ गुलज़ार साहब हैं जो लिखते हैं दरवाज़े के नीचे से सूरज ने धूप का पुर्ज़ा फेंका। ), बशीर बद्र, निदा फाजली, दुष्यंत कुमार (जिनकी कविता पढ़ कर हम बड़े हुए ), केदारनाथ सिंह, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, माया एंजिलो आदि।
विदेशी साहित्यकारों में मोपांसा, ओ हेनरी , चेखव और तोल्स्तॉय बेहद पसंद है।

9. यह फेहरिस्त जितनी लंबी, उतनी ही खूबसूरत भी है। कोई एक ऐसी चीज़ जो आपको बेहद प्रिय है और जिसे कभी खोना नहीं चाहेंगे।
अपना बचपना।

10. अनुभव सच में नतमस्तक कराने की क्षमता रखते हैं। गले की बीमारी के इलावा कोई ऐसी घटना आपके जीवनकाल की जिसने आपकी ज़िंदगी पर बहुत गहरी छाप छोड़ी?
दो घटनाएं हैं जिनसे जीवन बदल गया। एक पॉजिटिव और दूसरा निगेटिव। निगेटिव का ज़िक्र पहले। वह एक भयानक हादसा था। मेरे जीजा एक ट्रेन हादसे में ऑफिस से घर आने में पहिए के नीचे आ गए।मौके पर ही उन्होंने दम तोड़ दिया। देखते-देखते मेरी दीदी का भरा पूरा घर उजड़ गया। शाम को रेलवे पुलिस ने उनके मोबाइल से दीदी को ही फोन किया था और दीदी ने मेरा नम्बर उन्हें दिया। मुझे हादसे के स्टेशन पर बुलाया गया जहां पहुँचने में रात के ग्यारह बजे गए। फिर बॉडी की शिनाख्त से लेकर पोस्टमार्टम और फिर मृत शरीर को लेकर घर आना और दीदी को सौंपना सबकुछ इतना भयावह और कारुणिक था कि बयां नहीं किया जा सकता। मेरे साथ मेरा पुत्र हर्ष था जो महज सत्रह वर्ष का था। इतनी अल्पायु में उसने यह सब देखा और इस घटना ने उसे धीर-गम्भीर बना दिया। मृत्यु से जुड़े सरकारी नियम कानून से मेरा पहला वास्ता था। अपेक्षित सहयोग भी मिला पर लूटने-खसोटने वाले गिद्ध भी मिले। इस दुख ने हम सभी को अतिसंवेदनशील बना दिया और दिल में यह भावना भी भर दी कि हमें अच्छे काम शीघ्र ही बिना समय गंवाए कर लेने चाहिए क्योंकि मृत्यु ही अटल सत्य है। जीजाजी की मृत्यु की बरसी पर मैंने एक कविता लिखी जो नीचे दे रहा हूँ :

ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ था जैसा फिल्मों में होता है।
न फोटो गिरी, न दीया बुझा।
न लौ ही थरथराई थी आँगन में,
न ही किसी परिन्दे के उड़ने की फड़फड़ाहट,
देर तक गूँजी थी कानों में,
न ही चौंक कर जागी थी वह,
न ही दिल उसका धड़का था,
रोज़ की तरह सूरज भी ढला था वक्त पर ही,
और साँझ घिर आई थी हौले-हौले,
दरवाज़े पर दस्तक की आस संजोए,
चूल्हे पर चाय की केटली रख,
किसी पत्रिका के पन्ने पलटते
देख लेती थी बीच बीच में वह
टिक-टिक करती घड़ी की सूइयाँ
रोज़ की ही तरह।
कि एक लमहे का पाँव फिसला था
और सो गई थी ज़िन्दगी
वक्त के पहिए तले
गुमसुम …चुपचाप,
और एक दुनिया उजड़ी थी।

यह कविता यौरकोट में audio quote के रूप में “ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ था” शीर्षक में सुनी जा सकती है।

दूसरी घटना हर्ष से सम्बंधित है। अमूमन पिता अपने बच्चों के लिए मार्गदर्शी होता है पर मेरे केस में उल्टा है । मैं नित प्रतिदिन उससे कुछ ना कुछ सीखता हूँ। एक बार मैं एक तथाकथित ज्ञानी पण्डित को लेकर घर पहुँच गया जिन्होंने हस्तरेखा और कुंडली देखने में राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की थी और वैसे वे गणित के प्रोफेसर भी थे इसलिए उनपर विश्वास करना कोई गलत नहीं था। उन्होंने हर्ष की इच्छा के विपरीत उसके हाथ की रेखाएं पढ़ डालीं और पूरे आत्मविश्वास से स्पष्ट शब्दों में कह डाला कि IIT क्वालीफाई करने का चांस दूर-दूर तक नहीं है। हर्ष की मायूसी उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी, पत्नी का चेहरा भी स्याह पड़ गया क्योंकि उस समय IIT ही हर्ष का एकमात्र सपना था। प्रोफेसर साहब से मेरे सम्बन्ध बिगड़ गए। मैंने उनसे कहा कि किसी के सपने पर कुठाराघात करना पाप है। यह वैसा ही है जैसे उड़ने की चाहत रखने वाले परिंदे के पर क़तर लिए जाएं। मैं भी उसका गुनहगार बन गया। हर गार्जियन का कर्तव्य है कि निगेटिव लोगों से बच्चों को दूर रखें। पर क्या यह सम्भव है? हम समाज मे रहते हैं और किसके मन में क्या है यह हम नहीं जान सकते। इसलिए अपनी लड़ाई हमें खुद लड़नी होगी। अपनी गलती मिटाने के लिए मैंने उसे खूब समझाने की कोशिश की, कई self help पुस्तकें मंगाईं (एक भी उसने नहीं पढ़ी, दरअसल उसे इसकी आवश्यकता ही नहीं थी।). वह आत्मविश्वास का धनी था। उसने प्रथम प्रयास में ही 993 रैंक से IIT क्वालीफाई किया। उसी ने मुझे सीख दी कि लक्ष्य पर गर नज़र हो और अपने काम के प्रति सच्ची लगन हो तो उपलब्धि मिलती है। इसलिए IIT के पश्चात जब उसने अकेले भारत भ्रमण (solo pan India traveller) या उसके बाद entrepreneur बनने की इच्छा ज़ाहिर की तो मुझे उसे सपोर्ट करने में कहीं कोई परेशानी नहीं हुई। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि अभी भी जब कभी हम क्षीण आत्मबल (low self esteem) में होते हैं तो उसे फोन लगाते हैं। कुछ मिनट बात करने के बाद एक नई ऊर्जा से हम फिर काम में लग जाते हैं। मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा कि वह मेरा पुत्र है बल्कि उसके साथी भी ऐसा महसूस करते होंगे ऐसा मेरा मानना है।

11. बेशक, यह बहुत ही सुंदर यात्रा रही है आपकी। YourQuote के बारे क्या कहेंगे?
पहले मैं ब्लॉग में लिखता था। YourQuote आने के बाद इसमें लिखने लगा। नित प्रतिदिन इसमें नए फीचर्स आ रहे हैं जिससे आकर्षण और अधिक बढ़ गया है। ऑडियो कोट आने से काव्य पाठ करना आसान हो गया जिससे ऑडिएंस भी बढ़ें हैं जो ब्लॉग में सम्भव नहीं हो पाता था। अब तो YQ एक नशा बन चुका है।

12. इस बात से शत-प्रतिशत सहमत होंगे सब ही। अब इस प्रश्न के साथ यह खूबसूरत साक्षात्कार खत्म करूंगी। YourQuote पे आपके प्रिय लेखक कौन हैं?
YourQuote में उच्च कोटि की रचनाएँ पढ़ने को मिल रही हैं। मेरे पसंदीदा लिखने वालों में कल्पना पांडेय, आरती श्रीवास्तव, अनूप अग्रवाल, साकेत गर्ग , मयंक तिवारी, अभिलेख, अनुभव वाजपेयी, आएना गिरिधर, विनयशील मिश्रा, बाबूशा कोहली, साहिबा रब, पीयूष मिश्रा, अनुपमा झा, संदीप व्यास, ऋचा त्रिपाठी पांडे, स्वरिमा तिवारी, हर्षा दूबे सच, श्रेय सक्सेना, प्रीति कर्ण, अंकिता साही इत्यादि हैं।

आईना: बहुत आभारी हूँ मैं YourQuote की जिसकी वजह से मुझे आप जैसे व्यक्तित्व को जानने का और सब के सामने लाने का मौका मिला। आपका बहुत शुक्रिया sir के आपने अपना क़ीमती वक़्त हमें दिया।

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