मिलिए आशीष अवस्थी से — इश्क़ के शायर से

योरकोट की प्रतिष्ठित लेखिका शुभी खरे ने कुछ वक़्त निकाल कर आशीष अवस्थी से उनके जीवन और लेखन के बारे में बातचीत की| उस बातचीत के महत्वपूर्ण अंश आपके समक्ष प्रस्तुत हैं जो आशीष अवस्थी के लेखन में झलकने वाली प्रेम की समझ को दर्शाती है|

Shrey Saxena
YourQuote Stories

--

Ashish Awasthi

1. नमस्ते आशीष जी| सबसे पहले मैं यह चाहूंगी कि आप अपना एक छोटा सा परिचय हमारे साथियों एवं आपके पाठकों को दें|

. सबसे पहले तो आपका तहे-दिल से शुक्रिया जो आपने यह ज़हमत उठाई|

पहला प्रश्न ही कितना अच्छा है| हमें दुनिया के बारे में पता होता है मगर अपने बारे में सोचना पड़ जाता है क्योंकि ख़ुद से जुड़ने की कोशिश ही नहीं करते कभी| खैर कोशिश करके देखता हूँ |

मेरा नाम आशीष अवस्थी है, उत्तर प्रदेश के कानपुर में पला-बढ़ा हूँ| घर में मम्मी-पापा, भैया-भाभी, बाबा-दादी सब लोग हैं| एकदम अच्छा ख़ासा परिवार है जिस में मैं सबसे छोटा हूँ तो क़िस्मत से मोहब्बत बहुत मिली है सबसे| परिवार से ख़ूब जुड़ाव है ख़ासकर पापा से|

गाज़ियाबाद से इंजीनियरिंग की IT में और अब मुंबई में काम कर रहा हूँ| एक tech-blog है मेरा और दुनिया के 700 और देश के 20 ओरेकल ACEs (प्रौद्योगिकी में किसी को उसकी निपुणता के हिसाब से मिलने वाली उपाधि) में से मैं एक हूँ|

लिखने का शौक बचपन से रहा है| जब तीसरी-चौथी कक्षा में था तो छोटी-छोटी कविताएँ लिख कर बाबा को सुनाता था और वो शाबाशी दिया करते थे भले ही मैंने कुछ भी उल्टा-सीधा लिख दिया हो| पर उससे हौसला बहुत मिलता था| जब मैं ग्यारह साल का हुआ तो एक कविता अमर उजाला में प्रकाशित हुई, रविवार के उस बच्चों के संस्करण में| उसे काटकर संभल कर भी रखा था मगर अब गुम हो चुकी है|

घूमने का शौक़ीन हूँ मगर बहुत आलसी हूँ| खाने से बहुत प्रेम है और सुबह सोने से और भी ज़ियादा| पुराने गाने और ग़ज़लें सुनना बहुत पसंद है|

2. Tech-blog और साथ में कविताएँ बहुत ही कम मिलने वाली जोड़ी है| YourQuote पर आपका सफ़र कैसे शुरू हुआ?

. दरअस्ल, IT मेरा पैशन है| मुझे मेरा काम उबाऊ नहीं लगता| बहुत शौक़ से करता हूँ अपना काम और उसी शौक़ में 2012 में अपना blog (www.awasthiashish.com) शुरू किया जो की अब काफी लोकप्रिय है (थोड़ी तारीफ़ तो बनती है :P) और कविता लिखना ज़िन्दगी है| इससे सुकून मिलता है| सारी बातें ख़ुद से कर लो बिना कुछ बोले|

मैं “लिखना है” यह सोच कर कभी नहीं लिखता और पता नहीं यह कैसा वास्ता है कि चलते-फिरते, बाइक पर या कहीं भी घूमते हुए, या किसी को देखकर अक्सर ख़याल ऐसे आ जाते हैं कि बस उनको लिख देता हूँ और बाद में उसी कच्चे ख़याल को थोडा पका लेता हूँ | :D

तो प्रौद्योगिकी ज़रूरत है, रोटी देती है और कविता सुकून देती है और दोनों ही चाहिए |

अहा| YQ से जुड़ने की कहानी काफ़ी अनोखी है| मेरा एक और blog है जिस पर मैं शेर-ओ-शायरी संग्रहित करता हूँ| उस में कुछ शेर अपने भी लिखे थे अपने नाम के साथ तो एक रोज़ यूँ ही शेर को गूगल किया तो सर्च रिजल्ट देख कर हैरानी हुई कि YQ का लिंक था और एक साहब ने अपने नाम से वो शेर पोस्ट कर रखा था| तब पता चला कि YQ एक app है तो ऐसे मुलाक़ात हुई मेरी YQ से| फिर तो app इंस्टॉल करके सबसे पहले उन साहब के पोस्ट फ्लैग किए जिनमे दस तो मेरे ही थे| पर उसके बाद लिखना शुरू किया और बहुत अच्छा लगा | पहली बार कोई ऐसा प्लेटफार्म मिला जिस में हम ख़ूबसूरती को अल्फ़ाज़ के संग जोड़ सकते हैं और उसमें बहुत मज़ा आया| बस वहीँ से यह सुहाना सफ़र शुरू हुआ|

3. हाहा, यह तो वाक़ई में काफी अनोखी कहानी है| चलो, इसी बहाने आपको अपना चोर मिल गया| IT करने का कुछ तो असर पड़ा होगा आपके लेखन पर, क्योंकि दोनों ही आपका प्यार हैं, ऐसा प्रतीत होता है?

. बिलकुल सही कहा आपने, दोनों से प्यार है| अभी भी यह उत्तर कोड एडिटर पर ही लिख रहा हूँ| (दफ्तर में हूँ न )

असर ऐसा हुआ कि दोनों के लिए वक़्त मिलना कम हो गया| :P तो दिन एक का और रात दूसरे की, ऐसा बंटवारा कर दिया है|

और कभी-कभी दोनों ही मिल जाते हैं जैसे एक शाम ऑफिस में काम कुछ ज़ियादा था और मैं निकलना चाहता था पर रुकना पड़ गया और ऐसा रुकना पड़ा कि रात हो गयी तो एक बजे एक दर्द निकल ही गया :

“ज़िन्दगी है साहब, मजबूर कर देती है
रंगीन कागज़ दिखा के मज़दूर कर देती है।

तो कभी-कभी दोनों मोहतरमायें आपस में मिल भी लेती हैं, थोड़े लॉजिक अच्छे होते जाते हैं | और एक फ़ायदा ये है कि अब वक़्त नहीं बचता ज़ियादा तो खाली वक़्त वाली आधी उलझनें कम हो गयी हैं |

4. क्या ख़ूब पंक्तियां कही हैं आपने! कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाने का हुनर बहुत काम लोगों में होता है| आपकी लेखनी में जीवन के फ़लसफों से लेकर मोहब्बत की दास्ताँ भी है| आपको इसकी प्रेरणा कहाँ से मिलती है? क्या बात सबसे ज़रूरी है आपके लिए लेखनी में?

. हाँ, ये बहुत ज़रूरी सवाल है और ये बहुत लोगों ने किया मुझसे और जैसा कि मैंने कहा कि ऐसा बहुत काम होता है कि मैं “लिखना है” सोच कर लिखने बैठूँ| मेरा मानना है कि दबाव से कुछ भी हासिल नहीं होता, न ज़िन्दगी में और न लेखनी में| जब ख़याल ख़ुद ही आ जाए तो हम ज़रूर उसे आगे बढ़ा सकते हैं| लिखने के लिए ख़याल मुझे अपने आसपास की चीज़ों से, ज़िन्दगी के हालात से, ख़्वाबों से, इन्हीं सब से मिलते हैं और जैसे ही किसी ख़याल ने दस्तक दी, झट से लिख लेता हूँ और थोडा पका कर लिख लेता हूँ|

सब कुछ लिखना अच्छा लगता है| सबसे ज़ियादा ज़िन्दगी और मोहब्बत पर लिखता हूँ क्योंकि “ज़िन्दगी से मोहब्बत है और मोहब्बत से ज़िन्दगी है|”

कुछ उदाहरण देता हूँ जैसे देखा अब तक कि ज़िन्दगी में कि अगर किसी चीज़ के पीछे भागो तो वो और भागती है और जब मिलती है तब तक उसका कोई मतलब नहीं रह जाता तो 2 पंक्तियां आयीं:

“बहुत तलबग़ार था जिस तलब का
वो तलब भी बेमतलब निकली।”

ऐसे ही एक दफ़ा बहुत तबीयत ख़राब हुई| जो लोग अपने से लगते थे, उन्होंने तो हाल तक न पूछा, बड़ी तकलीफ सी हुई अन्दर पर फिर लगा कि कोई पूछे या न पूछे, क्या फ़र्क़ पड़ेगा मेरी सेहत पर, बस फिर से….

“लोग तलाशते हैं बस कोई फ़िक्रमंद हो
वरना कौन ठीक होता है हाल पूछने से ?”

और जब सबकी तरह मुझे भी नींद नहीं आती तो ……

“अक्सर मेरे साथ ये वाक़या हो जाता
रात सो जाती है, मैं नहीं सो पाता।।”

एक दिन गाँव में घूम रहा था तो एक मज़दूर दिखा खेतों में काम करते हुए | बिलकुल दुबला-पतला, उसकी सारी पसलियाँ बाहर से गिनी जा सकती थीं तो कुछ कहा नहीं गया इसके अलावा…..

“कुछ ऐसा तोड़ा था उस शख़्स को मुफ़लिसी ने
ख़ाली था पेट दिख गया जिस्म की दरारों से।।”

बस इसी तरह लिखता जाता हूँ और बहुत कुछ ख़्वाबों और कल्पनाओं से आता है, ख़ासकर मोहब्बत;)

5. मानना पड़ेगा बहुत ही अलग अंदाज़ है आपका ज़िन्दगी को देखने का| आपकी बातें सुनकर लगता है कि हर लम्हे को आप दिल तक ले कर जाते हैं और बसा लेते हैं| ऐसा कोई वाक़या या कहानी जिसने आपकी ज़िन्दगी के प्रति सोच बदल दी हो? गहरा असर छोड़ा हो आप पर?

. ऐसे कई वाक़ये हैं जिनसे ज़िन्दगी पर बहुत असर पड़ा है और अतीत में काफ़ी ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे मेरी सोच और ज़िन्दगी बदली है जैसे हरे पत्तों का रंग ज़र्द हो जाता है|

जॉन एलिया साहब का एक शेर याद आ गया :

“जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है”

तो वाक़या तो सुनना पड़ेगा शायद मुमकिन न हो पाए पर असर ज़रूर बताऊंगा| असर ये है कि किसी बात को लेकर सख़्त नहीं होना चाहिए, अटकना नहीं चाहिए| सबकी समझ एक ही चीज़ को लेकर अलग-अलग हो सकती है| इसी बात पर एक और शेर लिखा था :

“समझने समझने का फेर बहुत ख़राब है
तू कहता है पानी है वो कहता है शराब है।”

और “ज़मीन से जुड़े रहना है हमेशा, आँख बंद करके किसी पर भी भरोसा नहीं करना है मम्मी-पापा के अलावा” तो उन वाक़यों से जो समझा उसका एक हिस्सा ऐसा है :

“जेब बड़ी हो जाए, अच्छा ही है ये तो
ज़मीर भूल फ़रेब का इख़्तियार मत करना
सबसे मिलो, हंसो और बातें करो
भूले से भी किसी का ऐतबार मत करना
जिस ओर जाने को मना किया हो माँ ने
उस रस्ते को कभी पार मत करना।।”

6. हर बात को कैसे बेहतरीन तरीके से पेश करा जाए कोई आपसे सीखे | हर लेखक को ख़ुद में कुछ नया दिलचस्प परिवर्तन लाने का मन करता है | अगर आपको आपकी लेखनी में कुछ परिवर्तन लाना हो तो वो क्या होगा ?

. आपका बेहद शुक्रिया ऐसे खूबसूरत अल्फाज़ के लिए और मैं लेखन शैली में कोई बदलाव नहीं लाना चाहता हूँ और ना ही ख़यालों में | हाँ, उर्दू सीखने कि बहुत ख़्वाहिश है | उर्दू का मुझे ख़ास इल्म नहीं है पर मुझे इसका प्रयोग करना बहुत पसंद है तो उर्दू व्याकरण सीखने कि बड़ी इच्छा है |

और व्यस्तता कि वजह से कुछ ज़ियादा पढ़ नहीं पाता, सीख नहीं पाता तो बस एक बहुत बड़ी कमी यही है और यही बदलाव देखना चाहता हूँ आने वाले वक़्त में |

7. ये बहुत अच्छी बात है | उर्दू सच में खूबसूरत भाषा है | उम्मीद है आप जल्दी ही इसमें भी निपुण हो जायेंगे | कोई ऐसे प्रकार के लेखक या लेखनी हैं जिसे आप नापसंद करते हों या दूर रहने कि कोशिश करते हों ?

. मुझे तोड़ने कि बात करने वाले लेखक या ऐसा कोई भी लेख नहीं पसंद | बात करनी है तो जोड़ने कि करो, सृजन कि करो न कि किसी को भड़काने की या किसी पर कीचड उछालने की |

लेखक को निष्पक्ष, स्वतंत्र होने के साथ-साथ ये भी ध्यान रखना चाहिए कि उनका लिखा कई और लोग पढ़ते हैं तो कहीं भी, किसी भी माध्यम से ग़लत सन्देश प्रेषित न होने पाए|

तो बस इसी तरह के लोगों से दूर रहता हूँ| बांटनी है तो मोहब्बत बांटो, नफ़रत पहले ही बहुत है ज़माने में|

8. बहुत ही उम्दा ख़यालात हैं आपके ज़िन्दगी को लेकर| काश! सबके ऐसे ख़यालात होते| अगर आपके जीवन पर कोई कहानी लिखनी हो तो उसका शीर्षक क्या होगा?
. “महफ़िल”, यह नाम रहेगा उसका| यह ज़िन्दगी एक महफ़िल ही तो है| सब इकट्ठे हुए हैं, अपना-अपना किरदार निभा कर जाने वाले हैं| कहीं आह है तो कहीं वाह है|

9. वाह! क्या बात कही है आपने| आगे आपके किस दिशा में जाने के इरादे हैं ? मुझे यकीन है कि बहुत लोग आपको और भी बहुत जगह पढने के इच्छुक हैं| लेखनी के प्रति अपनी दिलचस्पी को कहाँ तक ले जाना चाहेंगे?

. बहुत अनिश्चित है ज़िन्दगी| आने वाले पल का भी कोई ठिकाना नहीं है तो कुछ सोचा नहीं है पर हाँ, अगर इसी तरह चलता रहा सफ़र तो जो मुक़ाम मंज़िल तक पहुँचने में आएंगे, सबका लुत्फ़ लेते हुए आगे बढ़ता रहूँगा| लिखता तो जब तक हूँ तब तक रहूँगा क्योंकि इसी से सुकून-ए-ज़िन्दगी है| और आपके इस सवाल पर एक जवाब बन गया अभी-अभी, ज़रा गौर फ़रमाइयेगा, बिलकुल ताज़ा पका है, चख कर बताइए ज़ायका कैसा लगा :P

“मंज़िल की फ़िक्र नहीं मुझे,रास्तों पे मैं लड़ता रहूँगा,
ज़िन्दगी तू सोच ले अपना, मैं तो आगे बढ़ता रहूँगा।”

बस इसी नज़रिए से जीते जाना है और लिखते जाना है, बाकी जो होना होगा और जहाँ तक पहुंचना होगा वो सब अपने आप होता जाएगा वक़्त के साथ, ऐसा मानना है मेरा|

10. वाह ! क्या पका है, स्वाद आ गया है| चलिए देखते हैं ज़िन्दगी कहाँ ले जाती है हम सबको| आज में जीना बेहतर है| कोई ऐसी किताब जो आप सोचते हैं कि “काश! मैंने लिखी होती“ ?

. क्या ख़ूबसूरत सवाल किया आपने| बिलकुल तैयार जवाब है इसका, “मधुशाला” है वो किताब जो मुझे हर बार लगता है कि काश मैंने लिखी होती| जीवन के हर पहलू को मैख़ाने से गुज़ार दिया है बच्चन साहब ने| मेरी कुछ पसंदीदा पंक्तियां बताना चाहूँगा आपको :

“मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।

प्राण प्रिये यदि श्राद्ध करो तुम मेरा तो ऐसे करना,
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला !”

11. “मधुशाला” सच में बेहद ख़ूबसूरत है और आपकी लेखनी के अपने रूप हैं| इनका मेल सच में अद्भुत होगा | मुझे यह जानने कि उत्सुकता है कि वो कौन लेखक/लेखिकाएं हैं जो आपकी पसंदीदा हैं YQ पर ?

. सारे लोग ही अपने आप में ख़ास हैं | सबका अपना अल्हड अंदाज़ है लिखने का फिर भी कुछ नाम बताऊंगा आपको जिन्हें पढ़ कर ख़ास लुत्फ़ आता है मुझे और उनमे से आप भी एक हैं |

अर्पण विश्नोई, पवन कुमार लाडिया, सिद्धार्थ दधीच, स्नेहा सिंह सेंगर, गरिमा सिंह, अनिल आमेटा, जय कुमार, मयंक तिवारी, आशुतोष तिवारी, शिवम तिवारी, निक्की राजपुरोहित, प्रतीक राज मिश्रा, मीनाक्षी मिश्रा, प्रसून व्यास, अंशुल जोशी…

और भी बहुत से नाम हैं जो बहुत अच्छा लिखते हैं पर सबके नाम लिख पाना संभव नहीं होगा और धीरे-धीरे कुछ नए लोगों से ताल्लुक हुआ है| उन्हें पढ़ा, वो भी बहुत कमाल लिखते हैं|

12. बहुत अच्छा लगा ख़ुद के पसंदीदा लेखक के मुँह से ख़ुद की तारीफ़ सुनकर| लोगों को पढना और समझना बहुत ही अच्छा लगता है| कोई ऐसा बदलाव या अपने अन्दर कोई अलग बात आपको पता चली हो, YQ से जुड़ने के बाद ?

. बदलाव एक बड़ा यह है कि अब WhatsApp, Facebook और Instagram से कई ज़ियादा वक़्त YQ पर बीतने लगा है और वो भी सृजनात्मक तरीक़े से| ख़ुद से मिलने का वक़्त ज़ियादा हो गया है क्योंकि जब हम कुछ लिखते हैं तो पहले एक मुलाक़ात ख़ुद से होती है उसके बाद कलम आगे बढती है |

अलग बात यह मालूम चली कि मैं भी थोडा-बहुत ठीक-ठाक अलफ़ाज़ जोड़-तोड़ लेता हूँ| :P पहले डायरी में लिखता था तो ख़ुद ही लिखा, ख़ुद ही पढ़ा| अब जब और सभी पढ़ कर उन जज्बातों से जुड़ते हैं तो लगता है कि मैं अकेला नहीं हूँ, यहाँ तो मेरी ही भीड़ है| सब में कहीं ना कहीं मैं हूँ और वो सब कहीं न कहीं मुझ में हैं |

13. ठीक-ठाक अलफ़ाज़ जोड़ लेना आपके लिए कम बयानी मानी जाएगी| आपके आसपास कोई ऐसी चीज़ जिसमे आपकी जान बसती हो? जो आपके दिल के सबसे करीब हो?

. इनायत है, आपका ऐसा कहना|

कोई चीज़ तो ऐसी नहीं है जिसमे जान बसती हो| दिल के सबसे करीब परिवार है और पापा में मेरी जान बसती है| :)

चीज़ों के बारे में बात करें तो Oracle ACE Plaque फिलहाल तो बहुत कीमती है| एहमियत है उसकी ज़िन्दगी में ख़ास, बाकी और कुछ ऐसा नहीं है|

शुभी: शुक्रिया आशीष जी कि आपने इस इंटरव्यू के लिए समय निकाला| व्यक्तिगत रूप से मैं ख़ुद आपकी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ तो मैं चाहती थी कि मैं आपका इंटरव्यू ले पाऊं और आपकी लेखनी के पीछे के राज़ समझ पाऊं| :P

बहुत बहुत धन्यवाद| आपको और अच्छे से जान कर और समझ कर मुझे अच्छा लगा| उम्मीद करती हूँ मैंने आपको ज़ियादा परेशां नहीं किया|

आशीष: क्या ख़ूब दरवाज़ा बंद किया आपने…. वाह! :D और बेहद शुक्रिया आपने इतना वक़्त निकाला| मेरे लिए बहुत मायने रखता है|

आशीष के कुछ और लेख पढ़ें:

आशीष अवस्थी के अन्य लेख पढने के लिए उन्हें योरकोट पर फॉलो करें: https://www.yourquote.in/ashish-awasthi-busb/quotes/

--

--